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समीं॑ प॒णेर॑जति॒ भोज॑नं मु॒षे वि दा॒शुषे॑ भजति सू॒नरं॒ वसु॑। दु॒र्गे च॒न ध्रि॑यते॒ विश्व॒ आ पु॒रु जनो॒ यो अ॑स्य॒ तवि॑षी॒मचु॑क्रुधत् ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sam īm paṇer ajati bhojanam muṣe vi dāśuṣe bhajati sūnaraṁ vasu | durge cana dhriyate viśva ā puru jano yo asya taviṣīm acukrudhat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम्। ई॒म्। प॒णेः। अ॒ज॒ति॒। भोज॑नम्। मु॒षे। वि। दा॒शुषे॑। भ॒ज॒ति॒। सू॒नर॑म्। वसु॑। दुःऽगे। च॒न। ध्रि॒य॒ते॒। विश्वः॑। आ। पु॒रु। जनः॑। यः। अ॒स्य॒। तवि॑षीम्। अचु॑क्रुधत् ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:34» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:4» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! जो (पणेः) स्तुति किये गये के (भोजनम्) पालन वा अन्न आदि को (अजति) प्राप्त होता और (मुषे) चोर के लिये दण्ड को और (दाशुषे) दानशील के लिये दान (चन) भी (सम्) उत्तम प्रकार (वि, भजति) बाँटता है तथा (यः) जो (अस्य) इस शत्रुजन की (तविषीम्) सेना को (अचुक्रुधत्) अत्यन्त क्रुद्धित करता है वह (ईम्) सब प्रकार से (विश्वः) सम्पूर्ण (जनः) मनुष्य (दुर्गे) दुःख से प्राप्त होने योग्य व्यवहार वा उत्तम कोट में (पुरु) बहुत (सूनरम्) उत्तम मनुष्य जिसमें उस (वसु) धन का (आ) सेवन करता है और राजा से (ध्रियते) धारण किया जाता है ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो राजा चोर, डाकू आदि जनों के लिये कठिन दण्ड और श्रेष्ठ जनों के लिये प्रतिष्ठा देता है, उसका राज्य धन आदि से युक्त हुआ वृद्धि को प्राप्त होता और उसका इस संसार में यश और परलोक में सुख होता है ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! यः पणेर्भोजनमजति मुषे दण्डं दाशुषे दानं चन सं वि भजति योऽस्य शत्रोस्तविषीमचुक्रुधत् स ईं विश्वो जनो दुर्गे पुरु सूनरं वस्वा भजति राज्ञा ध्रियते ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सम्) सम्यक् (ईम्) सर्वतः (पणेः) स्तूयमानस्य (अजति) प्राप्नोति (भोजनम्) पालनमन्नादिकं वा (मुषे) चोराय (वि) (दाशुषे) दानशीलाय (भजति) (सूनरम्) शोभना नरा यस्मिँस्तत् (वसु) धनम् (दुर्गे) दुःखेन गन्तुं योग्ये प्रकोटे वा (चन) (ध्रियते) (विश्वः) सर्वः (आ) (पुरु) बहु (जनः) मनुष्यः (यः) (अस्य) जनस्य (तविषीम्) बलम् (अचुक्रुधत्) भृशं क्रोधयति ॥७॥
भावार्थभाषाः - यो राजा दस्य्वादिभ्यः कठिनं दण्डं श्रेष्ठेभ्यः प्रतिष्ठां प्रयच्छति तस्य राज्यं धनादियुक्तं सद्वर्धते तस्येह यशोऽमुत्र सुखं च जायते ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा चोर, दस्यू इत्यादी लोकांना कठीण दंड देतो व श्रेष्ठ लोकांना मान देतो त्याचे राज्य धन इत्यादींनी वाढते त्याला जगात यश व परलोकात सुख मिळते. ॥ ७ ॥